शून्य
मै शून्य हूं,मै शून्य हूं, हां मै ही शून्य हूं, मैं सत्य हूं असत्य मैं मैं नाश हूं निर्माण मै मैं ज़िन्दगी का मूल हूं मानव तेरी भूल मै मैं तो एक वरदान हूं मानव तेरा श्राप मै मैं शून्य हूं मैं शून्य हूं हां मै ही वो शून्य हूं मैं ओम हूं ओमकार मै मैं ही ईश हूं और तेरी पुकार मै मै इकाई हूं, और स्थाई मै हां मैं ही वो शून्य हूं जो बसा तेरी हर आवाज मै मैं ईश हूं और काल मै मैं लौकिक हूं अलौकिक मै मैं ही ब्रह्म हूं और शंकर मै मैं पूर्ण हूं और तेरा विकार भी मै मैं शून्य हूं, मैं शून्य हूं हां मैं ही एक शून्य हूं मैं ही जीवन का आगाज़ हूं मानव तेरा संस्कार मै मैं ही बिछा तेरी शरशय्या हूं क्यूंकि ईश की पुकार मै मैं सुबह हूं और रात मै सृष्टि की बसी हर आवाज़ मै कोयल की कूक हूं और कौवे की आवाज मैं, मैं ही शून्य हूं, मैं शून्य हूं हां मैं ही वो शून्य हूं मैं सृष्टि का निर्माण हूं मैं सृष्टि का विनाश मैं हां मैं ही वो शून्य हूं क्यूंकि ईश की हर आवाज मैं