Ram raj

 राम राज


क्यों ना मैं राम राज की दरस करूं,

क्यों ना मैं राम राज की अरज करूं,

क्यों ना मैं राम राज की आस करूं,

क्यों ना मैं राम राज की पीपास करूं,


जब शंकर और कंकर बैठ आपस मै विनोद करें,

जब हर जीवन चेन की स्वास भरे,

दर्द, दुख संताप की कही कोई ना छाया हो,

जब सरस्वतीपत्य सुख में आंखों से बात करे।


माताओं, बहनों के मुख पर अविरल मुस्कान रहे,

कोई  दुष्ट हरे ना उनको,

ऐसा ना उनके जीवन में कोई ना संताप रहे,

हमेशा उनके अधरों  पे खुशी की लालिमा छाई रहे,

क्यों ना राम राज हो ऐसा फिर से ये विश्वास करे।


महल से ज्यादा लोगों को पर्णकुट्टी भाए,

देवर भाभी से विनोद करने में शर्माए,

अनुज अग्रज के चरणो में स्वर्ग सा सुख पाएं,

क्यों राम राज हो ऐसा जग में,

जहां तन से ज्यादा मन सुख पाए।


जहां सब लोग खुद को नरेश महारानी के रूप में पाए,

राजा प्रजा का अंतर यूं मिट जाए,

जहां धारा पे कोई भी चेन से दो पल सो जाए,

क्यों ना ऐसे राम राज की करूं पिपासा,

जब हर धरा मुक्तिधाम बन जाए।


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