प्रलय आने को है

लाशों से भूमि पटी हुई,

मौत ने कैसा तांडव मचाया है,

देख रे मानव तेरा कृत्य कैसे लौट के आया है,

जिनके लिए तू मरता था,

वो बीच भवर में छोड़ गए,

नोच गए तेरे चीर सारे,

और तुझे नंगा छोर गए।


आज तू सांसों के लिए फिर भी मिन्नत करता है।

ना जाने किसके लिए अब भी तू जीता और मरता है।

समझ ना पाए तू,

ये तेरे पापों की छाया है,

और तू कोसे मुझको,

मैने प्रलय मचाया है।


संभल जा अब भी तू,

वरना प्रलय आने को है,

आज तू सांसों के लिए तरसता है,

कल तू पानी के लिए भी तरपेगा,

भूख के लिए दाने ना होगे,

सोच तब तू कितना मचलेगा।


Comments

Popular posts from this blog

Tales of a tough time

A new day

Remember my name