किसान हूं साहब
मैंने अपने मकान को बारिश में जलते देखा है।
हां मैंने अपने सपनो के महल को बारिश में बिखरते देखा है।
हां मैंने महीनों की मेहनत को बारिश में बहते देखा है।
मैं किसान हूं साहब,
हां मैंने ये सब कुछ देखा है।
अनाज उगाता हूं पर मैंने अपने बच्चों को भूक से रोते देखा है।
अपनी मेहरिया को मैंने मन मारते भी देखा है।
वादा किया जिससे खुश रखूंगा सदा,
उसे आज दूसरो के जूठे बर्तन साफ करते हुए भी देखा है।
मैं किसान हूं साहब,
हां मैंने ये सब कुछ देखा है।
बूढ़े मां बाप को दवाई के लिए मैंने लाचार देखा है।
दबे कुचले अरमानों को मन में फिर से उन्हें मारते देखा है।
मेरी परेशानी देख उन्हें चुपके अपनी लाचारी पे रोते देखा है।
टूट ना जाऊं मैं कहीं बीच डगर में इसलिए उन्हें हर वक्त मुस्कुराते देखा है।
मैं किसान हूं साहब,
मैंने ये सब कुछ देखा है।
कहने को तो मानवता का सबसे श्रेष्ठ काम है।
हां पर हर किसान को मैंने मन मारते हुए ही देखा है।
पता नहीं क्यूं मैंने हर किसान को बस लाचार देखा है।
आंखे नम हो जाती है
उनकी बदहाली का आलम देख के,
फिर अपनी बेबसी का आलम देख,
मैंने इस सोच को बस यूंही जाते देखा है।
खुद को खुदी मिटा के ना जाने ये सब कुछ झेल जाते है।
भूके हम ना रहे इसलिए अपने बच्चों को ये भुके पेट सुलाते है।
वादा किया था जो मेहरीया से, उसमें एक वादा और जोड़ जाते है।
अपने अम्मा बाबूजी को अपने रोती सूरत को मुस्कुराके दिखाते है।
किसान है साहब,
पता नहीं सबकुछ ये युही कर जाते है।
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