एक स्वांद

ये क्या बचपन और जवानी का क्या संवाद हुआ,
मानो दो समय का आपस में गहरा विवाद हुआ,
छिर गए दोनों युद्ध पटल पे,फिर एक भीषण हुंकार हुआ,
दोनों अहम में यूं टकराए मानो एक भीषण द्वंद का विस्तार हुआ,
छाई करुधित लालिमा नभ में मानो अग्नि का विस्तृत संचार हुआ।

जवानी बोली अहम स्वर में जवानी मस्त मलंग,
यूं चलूं जैसे कोई भवर,
हर फूल का रस ले लेकर अाई देखो मै कैसी निखर,
ना रोक टोक भाए इस मन को,उरू नभ में जैसे कोई नभ्चर,
बेकरारी है इस तन को, मन अब कोतूहल का बाज़ार हुआ
रुक आकलन करने से ना जाने मन क्यूं बेजार हुआ
मकसद है जो मन को पूरा करने का विचार हुआ
भाए ना बंदिशों की बेरियान हौसलों से अब ये आभास हुआ
पंख लिए इस मन को अब ना रुकने का आभास हुआ

देख जवानी के अहम अपार बचपन कर गई सारी सीमा पार,
बोली ऊंचे स्वर में बचपन
देख जवानी तेरी रीत अपार, खो चुकी तू बचपन का प्यार
मा का प्यार पापा की मार खो चुकी अब इसे तू यार
दोस्तों के  संग खेलना-खाना, भाई बहन का वो मीठा प्यार
मिल ना पाए तुझे अब इस संसार
किस्सो कहानियों में दिन ढल जाना
थक हार मा की गोद में सो जाना
क्या मिल जाएगी तुझे अब इस बार
काग़ज़ की नाव यूं बारिश में बाहना
मोहले की गलियों में यूं खेल में खो जाना
क्या वो पाएगी तू इस बार
अस्मत बचाने की दौड़ में यूं खो चुकी है खुदको
खोजे मुझको तू यूहीं दिन रात

देख ये वाक् युद्ध बुढ़ापा चुपके से आया
देख ये वाक् युद्ध वो फिर मंद मंद मुसकाया
तन कब वो साथ नहीं,हड्डियों में अब वो बात नहीं रुधिर में अब वो ताप नहीं,दिल में अब कोई जज़्बात नहीं,
बचपन ने अठकेलियोन का साज दिया, योवन ने चंचलता का राग दिया
योवन में दिल को जज़्बात मिला, बचपन में सब का साथ मिला
जिया मै दोनों समय पूरा जिया, भरपूर समय का आनंद लिया,

जवानी बचपन किस बात पे लड़ते हो,
जीवन का बन सार  बन बुढ़ापा एक नाम आता
दिन का ये चक्र है जो सुबह और शाम आता है
सब का एक महत्तव है जो इस जीवन को काम आता है।
जीवन का ये परिपक्व स्वरूप बचपन जवानी तेरे बाद आता है
चलता  जवानी ना तू सुबह शाम तब ये रात कहां से पाया
जीवन का ये स्वरूप जिसे बचपन ने है बचाया

देख महत्तव दोनों अपना वो अब शांत हुए
वाक् युद्ध को अब असिमित विराम मिला
बैठ दोनों बुढापे के साथ अब रात के तारे  गिनते है
इस शांति में अब वो युद्ध विराम करते है

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